वाराणसी:
जय भारत मंच के काशी प्रांत वरिष्ठ महामंत्री संपूर्णा नंद पाण्डेय ने कहा कि भारतीय सनातन धर्म व संस्कृति में गुरु पूर्णिमा का बहुत ही महत्व है। इस तिथि पर हर साल गुरु पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। इस तिथि को आषाढ़ पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा और वेद व्यास जयंती के नाम से भी जाना जाता है। पांडेय जी ने कहा कि गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु पूजन और आशीर्वाद लेने का विशेष महत्व होता है।
वैसे तो हर माह की पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है लेकिन आषाढ़ माह की पूर्णिमा गुरु को समर्पित होती है। दिन शिष्य अपने गुरुओं का आभार व्यक्त करते हुए उनका नमन करते हैं। गुरु ही व्यक्ति को अज्ञानता से निकालकर प्रकाश रूपी ज्ञान की तरफ ले जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस तिथि पर महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ है। वेद व्यास जी ने पहली बार इस जगत को चारों वेदों का ज्ञान दिया था।
महर्षि वेदव्यास को प्रथम गुरु की उपाधि दी गई है। तथा शोध छात्र अमित कुमार तिवारी ने कहा गुरु की कृपा से ही शिष्य अज्ञान से आत्मबोध, अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होता है। शिष्य के व्यक्तित्व को संस्कार, सेवा और सत्य की भावना से गढ़ते हुए उसे जीवन के उच्चतम आदर्शों से जोड़ने वाले पावन गुरु पूर्णिमा के दिन सुअवसर प्राप्त होता है ।
प्रोफेसर शंकर कुमार मिश्र गुरु जी ने कहा कि इस दिन वेदों के रचयिता वेदव्यास को प्रमाण करें और यदि आपने अपने गुरु बना रखे हैं तो उनकी चरण वंदना करनी चाहिए और अपने गुरु का आशीर्वाद लेना चाहिए। इस दिन गुरु के अलावा भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है। इस दिन गाय की पूजा व सेवा और दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
सनातन धर्म में गुरु और शिष्य की परंपरा आदिकाल से ही चली आ रही है। तभी तो संत करीबदास लिखते है कि ” गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाये”। कबीरदासजी का यह दोहा गुरु के प्रति सम्मान को व्यक्त करते हुए है। ‘गुरु बिन ज्ञान न होहि’ का सत्य भारतीय समाज का मूलमंत्र रहा है। माता बालक की प्रथम गुरु होती है,क्योंकि बालक उसी से सर्वप्रथम सीखता है।
भगवान् दत्तात्रेय ने अपने चौबीस गुरु बनाए थे। गुरु की महत्ता बनाए रखने के लिए ही भारत में गुरु पूर्णिमा को गुरु पूजन या व्यास पूजन किया जाता है। गुरु मंत्र प्राप्त करने के लिए भी इस दिन को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।आप जिसे भी अपना गुरु बनाते हैं,आज के दिन विशेषरूप से उसके प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है। इस अवसर पर शोध छात्र दीपेंद्र तिवारी, डॉ, सत्य प्रकाश तिवारी, भूपेंद्र मिश्रा, प्रशांत चतुर्वेदी, संतोष दुबे उपस्थित रहे।