एक पत्रकार की आपबीती: विश्वास का धोखा, और एक संघर्ष की कहानी

पत्रकार सुरेश कुमार शर्मा की दुखभरी दास्तान। मैं यह किसी सहानुभूति के लिए नहीं, बल्कि एक चेतावनी और अपने जीवन की सच्चाई आपके सामने रखने के लिए कह रहा हूँ। अगर वाकई इंसाफ और मानवता बची है, तो मेरी बात को जरूर सुना जाए। एक समय था।

हमारा परिवार कभी बहुत खुशहाल था। हम चार भाई थे। मैं सबसे छोटा था। समय के साथ मेरे दो भाई चल बसे, और जो बड़ा भाई था, वो शराब का आदी बन गया। अब केवल मैं, मेरी अंधी और अपाहिज मां और बड़ा भाई बचे थे। मेरी मां धर्मा देवी जो न देख सकती थीं, न चल सकती थीं – वही मेरी प्रेरणा बनीं। उन्हीं के नाम पर मैंने “धर्मा देवी फाउंडेशन ट्रस्ट” की स्थापना की।

एक गलती… जिसने सब बदल दियाहमने सोचा कि मकान बेचकर कहीं और नई ज़िंदगी शुरू करें। तभी एक व्यक्ति से मुलाकात हुई। मैंने उसे मकान बेचने की बात बताई। कीमत बताई – 8 लाख रुपये। वहीं से शुरुआत हुई – विश्वासघात की।

हमने उस व्यक्ति पर इतना भरोसा किया कि उसे ईश्वर समान मान बैठे। हर त्योहार पर हम उसका आशीर्वाद लिए बिना खाना नहीं खाते थे। यहां तक कि मेरी पत्नी और बच्चे भी उसे भगवान मानने लगे। लेकिन वही व्यक्ति…जिसे हमने घर का हिस्सा बनाया,जिसने मेरी मां का सहारा बनने की बात की…उसने हमें धोखा दिया।

18 साल के बेटे की मौत और “श्राप” मेरे 18 साल के बेटे की मौत पर उस व्यक्ति ने कहा – “यह मेरा श्राप है! क्या कोई इंसान, जिसने हमारे घर में रोटी खाई, सेवा पाई, हमारी दुखियारी मां को छला – वो ऐसा कह सकता है? धोखे की परतें खुलती गईं…उस व्यक्ति ने मुआयदा कराया, जिसमें 8 लाख की बजाय 6 लाख की कीमत दिखाई। वादा किया – “एक साल में पूरा पैसा दे दूंगा।

लेकिन दो साल बीत गए और कुछ नहीं हुआ। जब पूछा – “अब क्या?”तो कहा – “पैसा लोगे या ज़मीन?हमने कहा – “ठीक है, जमीन दिलवा दो। तब उसने मेरी पत्नी के नाम एक एससी की जमीन मुआयदा करवा दी, लेकिन वह भी फर्जी निकली। अब असली जमीन मालिक कहता है – “मुझे तो कोई पैसा मिला ही नहीं।

मैं दिन-रात उस व्यक्ति और उसके परिवार की सेवा करता रहा।वो सोता था – मैं जागता था।हमारा घर, हमारी इज़्ज़त – सब उसके भरोसे छोड़ दिया।यहां तक कि उसी ज़मीन पर उसने हमें 50,000 का लोन भी दिलवा दिया – ताकि हम और उलझ जाएं।अब सवाल उठता है… क्या मेरी गलती सिर्फ यही थी कि मैंने भरोसा कर लिया? क्या इंसानियत की यही सज़ा है? मैंने कभी नहीं सोचा था कि जिस इंसान को भगवान माना,वही हमारे बेटे की मौत को “श्राप” कहेगा। हमारी मां को धोखा देगा।

हमारा घर बर्बाद करेगा। केस आज भी दीवानी न्यायालय में विचाराधीन है। पैसे के अभाव में तारीख पर भी नहीं जा पाता। अब तक 70-80 हजार रुपये खर्च कर चुका हूं – सिर्फ सच्चाई के लिए। कोई वकील कहता है – “50,000 लगेगा”,कोई कहता है – “इस केस का कोई मतलब नहीं। आज भी मैं उम्मीद कर रहा हूं कि वह व्यक्ति हमें हमारी ज़मीन वापस दिलवाए या सारा पैसा लौटा दे।

जिस दिन मेरे पास से सब्र का बाँध टूटेगा,उस दिन मैं उस व्यक्ति के सारे काले चिट्ठे मीडिया के सामने रख दूंगा। और अगर भविष्य में मेरे साथ कुछ होता है तो उसका जिम्मेदार वही व्यक्ति होगा। क्योंकि ऐसे लोग किसी भी हद तक जा सकते हैं। आख़िरी शब्द…मैं इंसाफ चाहता हूँ। अपने बेटे, अपनी मां और अपने परिवार के लिए। और इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूँ इस खबर को अपने चैनल और मंचों पर स्थान दे।

रिपोर्ट – रामविलास यादव

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